I had penned the following sometime in 2008. Reproduced in 2010. Hope you would like it.
तू परवाज़ भर, परवाह ना कर
अंबर पर चल, गिरने से ना डर
पाएगा ज़मीन गिरकर भी अगर
बन जा वो ज़ररा तू फलक से उपर
काँटे की वफ़ा, फूलों का दगा,
राहों पर ना कर इसकी परवाह,
चलता ही चल, रुकना ना ज़रा,
तू खुद को खुद का यार बना
मिल जाएँगे तुझे हसीन मंज़र
जो ढूंढेगा उनको अपने अंदर,
रोता हैं क्या, बैठा हैं क्यूँ
चल फिर से उठ और जी जान लगा
पूछेगा तुझे एक दिन वो खुदा
हो जाएगा जब दुनिया से जुदा
पाया हैं क्या खोया हैं क्या
कैसा रहा सफ़र तेरा
मक़सद तेरा वो पूरा हुआ
जो कर गुज़ारा जो करने चला
- विशेष अग्रवाल
4 comments:
Damn... this is awesome.... amazingly motivating... keep it up..
Also, why don't you add some of Aunty's poem's too?!!
Inspiring!
@ Parag & Shunty,
Thanks Bhai log..glad you liked it..
bahut hi badhiya sirji..very inspiring..
natwar
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